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10:42, 4 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
हमें कभी जरूरत नहीं हुई
दूसरी जुबानों से शब्द उधार लेने की
औरों ने हमारे ही शब्दों से बना लिए
नए-नए शब्द और पद
दुनिया की सबसे छोटी और पुरानी
हमारी भाषा
और क्या दे सकती थी इस दुनिया को
सिवाय कुछ शब्दों के
जैसे सत्य, मानवता और परिवर्तन.
</poem>