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|रचनाकार=यात्री
|संग्रह=पत्रहीन नग्न गाछ / यात्री
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छीप पर रहओ नचैत
कनकाभ शिखा
उगिलैत रहओ स्निग्ध बाती
भरि रति राति मृदु-मृदु तरल ज्योतिनाचथु शलभ-समाजउत्तेजित आबथु-जाथुहोएत हमर अंगराग हुतात्माक हुतात्मक भस्मसगौरवसुप्रतिष्ठित हँसितहि सुप्रतिष्ठ हरितहि हम रहबैरहबेदीअठिक दीअटिक जड़िसँ के करत बेदखल हमराने जानि, कहियाकहिआ, कोन युगमेयुगमेँभेटल छल वरदानअकल्प आकल्प हम रहब रहल बइसल दीप देवताक कोरमेकोर मेँ
</poem>