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अनुचित बचन वचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि। है रहीम रहीम रघुनाथ तेतें, सुजस भरत को बाढ़ि॥7॥
अब रहीम मुसकिल परीमुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥9॥
कमला थिर न रहीम कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै टेर। यह जानत सब कोय।रहि रहीम नर नीच मेंपुरुष पुरातन की बधू, स्वारथ स्वारथ टेर॥28॥क्यों न चंचला होय॥26॥
कागद को रहीम पर द्वार पैसो पूतरा, जात न जिय सकुचात। सहजहि मैं घुलि जाय।संपति के सब जात हैंरहिमन यह अचरज लखो, बिपति सबै लै जात॥40॥सोऊ खैंचत बाय॥37॥
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