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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>जब भी तुझ बिन भोर हुई.
नम आँखों की कोर हुई.
बाधायें तो आईं पर,
क्या चाहत कमजोर हुई.
कच्चे-कच्चे रिश्तों की,
कितनी पक्की डोर हुई.
तेरी खुशबू की चर्चा,
गुलशन में हर ओर हुई.
तू जब यादों में छाया,
और घटा घनघोर हुई.
</poem>
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>जब भी तुझ बिन भोर हुई.
नम आँखों की कोर हुई.
बाधायें तो आईं पर,
क्या चाहत कमजोर हुई.
कच्चे-कच्चे रिश्तों की,
कितनी पक्की डोर हुई.
तेरी खुशबू की चर्चा,
गुलशन में हर ओर हुई.
तू जब यादों में छाया,
और घटा घनघोर हुई.
</poem>