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Kavita Kosh से
ज्ञानी गुनवंता खुद होके,
पर ला घलक पढ़हावव रे।
बिना पढ़े मनखे के कीमत, कभू होन नइ पावे गा।
अगर नउकरी नइ पाये त, कुछू बात नइये ओमा।
पर के दरवाजा देखे बर,नइ पढ़ पाये कोनो गा।
शिक्षित बन के अपन नाम ला
दुनियां म बगराओ रे।
पर ला घलक पढ़हावव रे।
पढ़े लिखे म देस विश्व मं,का होथे ते जान लेबो।
जेहा हमर अहित ला करही, ओला झट झटका देबो।
हमर पास नइ बुद्धि के कमती,