भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चेतना / मैथिलीशरण गुप्त

4 bytes removed, 12:05, 4 फ़रवरी 2017
तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है,
पल पल है अनमोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
बहुत हुआ अब क्या होना है,
तेरी मिट्टी में सोना है,
तू अपने को तोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
दिखला कर भी अपनी माया,
देकर वही भाव मन भाया,
जीवन की जय बोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
तेरी ऐसी वसुन्धरा है-
अब भी भावुक भाव भरा है,
उठे कर्म-कल्लोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits