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खेल नहीं हारता / सुरेश चंद्रा

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खेल खेलने से पहले
जान लेने होते हैं
नियम और शर्त खेल के

खेल मे इज़ाज़त है
तुम्हें, खेलने के लिये
आख़िरी दम तक

शर्त है, दांव, दूसरा भी चलेगा
अपने दम भर, अपनी बारी में

नियम हैं
तुम एकतरफा नहीं खेल सकते
ऐलान नहीं कर सकते जीत अपनी, मद में

खेल मे मुँह है, मगर हैं, आँख और कान भी
खेल मे शातिर होने पर भारी है माहिर होना
मगर, सबसे ज़रूरी है, ज़ाहिर होना

सट्टोरिये किस्मत तय नहीं करते
चालें पल्ला झाड़ लेती हैं, बदन पर लगी
मिट्टी की तरह

तुम्हें जान लेना जरूरी है, कि होगी
खेल में तुम्हारे अनुभवों की गिनती भी
और तुम उन से परास्त भी हो सकते हो

खेल में केवल, तुम या मैं, हार या जीत सकते हैं
पर मुझे या तुम्हें ये जान लेना चाहिए
कि खेल नहीं हारता, कभी
मैं और तुम चूक जाएँ
अचूक प्रतिबद्धता लिये
खेल फिर भी होगा.

</poem>
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