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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=जिल्लत ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
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यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हँस कर रह जाती थी
क्षमा कर दिया !
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