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तुम आई / रंजन कुमार झा

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तुम आईं, तुम्हें देख मेरे गीतों ने जैसे फिर से मधुर अपना है शृंगार किया मुग्ध नयन से कविताओं ने कवि को चूमा,प्यार किया
तुम आईं तो मन-आँगन की महक उठी यह फुलवारी
गेहूँ-सरसों की के खेतों -सी झूम रही मन की चहक उठी क्यारी-क्यारी ऋतु वसंत आया जीवन में, खुशियों ने बौराए उन फूलों से अभिसार किया
शब्दों को हैं प्राण मिल गए, मिली काव्य को है काया
कलम हो रहे मतवाले, छंदों ने गान मधुर गाया
गजलों ने फिर सधे सुरों मुग्ध नयन से जैसे रूप सँवार लियाकविताओं ने प्रिय! को चूमा,प्यार किया
तुम आईं जीने की आशा लिए हुए ज्यों आँचल में
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