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3146तुम बिन बैरी रात हैफूलों की मुस्कान -सा,तुम बिन व्यर्थ विहान।हो तेरा संसार।छुवन तुम्हारी जब मिले रोम -रोम सुरभित रहे,पूरे तब अरमान।।बरसे निर्मल प्यार।।3247अपने आँगन में चला विनती की भगवान से, कैसा यह अभियान।मन है बहुत अधीर।बन्द नैन पढ़ने लगे आँचल में दे दो मुझे,गीता वेद,कुरान ॥प्रियवर की सब पीर।।3348मेरी झोली अपने वश में भरोकुछ नहीं,चाहे जग के शूल ।विधना का यह खेल।प्रिय के पथ कौन बाट में तुम सदाछूटता, बोते रहना फूल।कौन करेगा मेल।।3449 तेरे मन से जो जुड़ेफूल और खुशबू रहें,मेरे मन के तार।निशदिन बहुत करीब।रहना होगा साथ लेशूलों को होता कहाँ, साँसों की पतवार।।ऐसा प्यार नसीब ॥3550नुक़्ताचीनी मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।आलिंगन में गए बाँधकर, सभी सुखद दिन- रैन।कस लेना भुजपाश।हाथ लगा कुछ भी नहीं 51तुम प्राणों की प्यास हो,खोकर मन नम आँखों का चैन।नूर।36पाया हमने सेर पल भरकर पाता नहीं,खोया तुमको मन भर प्यार।पूँजी निकली हाथ से,सब कुछ बिका उधार।।दूर।3752खोकर ,ठोकर जब लगी,तभी हुआ यह भान।जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।आ पहुँचा था द्वार परदूर यहाँ परदेस में,यम लेकर फरमान।।भर -भर आते नैन।।3853टूट चुके खुशी देख पाते नहीं,इस गाँव दुनिया के, अब सारे दस्तूर लोग दर्पण में दिखते नहींजलने का इनको लगा, अपने ही नासूर ॥युगों युगों से रोग।।3954रूप आज,कल है हम तुम कुछ जाने नहीं,आती जाती छाँव।कितनी गहरी धार।हमको पूरा चाहिएगहन प्यार की नाव पर,तेरे मन का गाँव।।चले सिन्धु के पार।4055छाया दी जिस पेड़ नेतेरे दुख में जागते, काटी उसकी डाल ।कटती जाती रात।बार-बार फिर पूछतेतपता माथा चूमते, ‘अब तो हो खुशहाल’॥हुआ अचानक प्रात।।4156पता कुछ मैंने माँगा नहीं कितने भरे , हमने मन में खोट।बस दो बूँदें प्यार।मरहम जब तक ढूँढतेबदले में दे दो मुझे, फिर लग जाती चोट ॥अपने दुख का भार।।4257गले लगे फिर रो पड़ेअपने के आगे बही ,दोनों ही इक साथ।मन की सारी पीर।मन हँसी खो गई भीड़ में डर था बस यही,छूट न जाए साथ।।मन पर खिंची लकीर4358हम तो खाली हाथ हैं, कुछ अपनों का दुख देखकर,मन को मिले न चैन।ना बचा जनाब।इंतज़ार में दिन कटेकल जब हम होंगे नहीं,कटे दुआ में रैन ।।देगा कौन हिसाब ॥4459अँसुवन जल से सींचकरजितना हम झुकते गए,पूजे आँगन-द्वार।उतनी पड़ती मार।परदेसी आया नहींहम सदैव बेशर्म थे,खोले रहे किवार।कैसे जाते हार ।4560खोजे से मिलता नहींफूलों- सा मन दे दिया,हमको अपना गाँव।फिर छिड़के अंगार।हर लेती हर धूप कोतेरी तू ही जानता,जहाँ प्यार की छाँव।क्या लीला करतार।।
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