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|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
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|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>

</poem>हो फलीभूत तब प्रार्थना
शुद्ध हो जब तेरी भावना।

संग तेरा मिला जो मुझे
मूर्त होने लगी कल्पना।

क्यों वही प्राप्त होता नहीं
जिसकी होती है संभावना।

तू स्वयं को कसौटी पे रख
छोड़ संसार को आंकना।


ढल न पाए प्रयासों में जो
व्यर्थ होती है वह कामना।

भाव कितना सरल क्यों न हो
है कठिन शब्दों में ढालना।

बालपन का यही है स्वभाव
और उकसायेगी वर्जना।

प्राय हमको मिली है 'ऋषि'
वेदना की दवा वेदना।
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