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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
मत समझिये मुल्क कायम है भरम पर आपके
और बस्ती जी रही रहमो-करम पर आपके।

आपकी फ़ितरत से वाकिफ़ ख़ूब पूरा गांव है
एकता ने ज़ख़्म खाये हर क़दम पर आपके।

दीजिये कुछ दिन गुज़रने वक़्त छोड़ेगा नहीं
दाग़ आएंगे उभर नोके-अलम पर आपके।

ग़ालिबन खुलकर बताया ये ज़रूरी हो गया
आपको धोखा है ज़िंदा कौम दम पर आपके।

मशविरा, लिखिये महब्बत , मत लिखें, चिंगारियां
वरना लग जायेगी इक तोहमत कलम पर आपके।

चाहिए तख़लीक़ से हर सू बिख़र जाये खुशी
ढंग है 'विश्वास' उलझे पेचो-खम पर आपके।
</poem>
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