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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
शान है रुतबा है रानाई अभी मौजूद है
अय ग़ज़ल तुझसे शनासाई अभी मौजूद है।

धर्म को लेकर नहीं झगड़ा हुआ अब तक यहां
गांव में भरपूर दानाई अभी मौजूद है।

मुस्तनद ज़िंदा धरोहर अब ज़िला हरदोई में
बस्ती बख्तावर की बसवाई, अभी मौजूद है।

यकदिली की दे गवाही जामा मस्जिद शान से
मेरे परदादों की बनवाई अभी मौजूद है।

पीठ-देवी कूप पोखर है शिवल्ला देखिये
पास में थी नीम लगवाई, अभी मौजूद है।

गांव है रंजीत-पुरवा इक जिला उन्नाव में
शख्सियत पत्थर पे खुदवाई अभी मौजूद है।

हर प्रथा 'विश्वास' है ज़िंदा पुरानी आज भी
पर्व पर जाती कथा गाई अभी मौजूद है।
</poem>
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