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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
समझा के किया आपने अहसान बहुत
दौलत पे करे कोई न अभिमान बहुत।

मत बात कहो ऐसी भड़क आग उठे
बस्ती में कई लोग हैं नादान बहुत।

बातों में कभी उसकी न आना ही भला
उल्फ़त का करे जो ऐलान बहुत।

कल रात लगा हाथ कोई माथ पे है
करते हैं तेरे ख़्वाब परेशान बहुत।

दरिया की लहर ख़ूब गिनी साथ तेरे
आते हैं वो पल याद मेरी जान बहुत।

मिलते ही कई टुकड़े कलेजे के हुए हैं
ऐ दोस्त नज़र तेरी है शैतान बहुत।

'विश्वास' गली आज भी भूली न जहां
मचले थे कभी झूम के अरमान बहुत।

</poem>
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