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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
सुनहरे भोर का मौसम करो तैयार ले जाओ
अगर ये भाईचारा हो उन्हें दरकार ले जाओ।

बनाना मुल्क अपना खुशनुमा चाहें, इजाज़त है
हमारे मुल्क से कुछ पुर-हुनर गुलकार ले जाओ।

नसीहत है बुज़ुर्गों की, बुलावा हो किसी दर से
बिछे हों फूल राहों में , मगर तलवार ले जाओ।

करो दुर्गन्ध सारी खत्म फैली है जो सरहद पर
वफ़ा के बाग़ से कुछ फूल ख़ुशबू दार ले जाओ।

मिटाना दुश्मनी की धुंध अपने घर की चाहें गर
मेरे घर से मुहब्बत के दिये दो-चार ले जाओ।

न हों अच्छे नतीजे आग, नफ़रत, खून, वहशत के
उन्हें कहना, कि भारत से ये कारोबार ले जाओ।

खफ़ा जो मुल्क से, उनकी नज़र बदलेगी, दावा है
तुम उनकी बज़्म में विश्वास के अशआर ले जाओ।
</poem>
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