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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुस्कुराओ, गीत गाओ आ गया सूरज मकर पर
दान दो, आशीष पाओ आ गया सूरज मकर पर।
रोज़ तुलसी के निकट घर में जलाकर दीप घी का
आपदा घर से भगाओ आ गया सूरज मकर पर।
दे रही दस्तक बहारे-गुल, गुलाबी खुशबुओं को
ऐ हवाओ अब लुटाओ आ गया सूरज मकर पर।
सीख अपने आचरण से दो, न छेड़ो बहस कोई
ज्ञान की गंगा बहाओ आ गया सूरज मकर पर।
जीत ली हर जंग तुमने जब मशक्कत के भरोसे
छोड़ देहरी अब न जाओ आ गया सूरज मकर पर।
देश-रक्षा, जल-सुरक्षा और बेटी है बचाना
एक आंदोलन चलाओ आ गया सूरज मकर पर।
सिर्फ परहित ही रहे उद्देश्य जब 'विश्वास' सबका
पर्व-खिचड़ी तब मनाओ आ गया सूरज मकर पर।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
मुस्कुराओ, गीत गाओ आ गया सूरज मकर पर
दान दो, आशीष पाओ आ गया सूरज मकर पर।
रोज़ तुलसी के निकट घर में जलाकर दीप घी का
आपदा घर से भगाओ आ गया सूरज मकर पर।
दे रही दस्तक बहारे-गुल, गुलाबी खुशबुओं को
ऐ हवाओ अब लुटाओ आ गया सूरज मकर पर।
सीख अपने आचरण से दो, न छेड़ो बहस कोई
ज्ञान की गंगा बहाओ आ गया सूरज मकर पर।
जीत ली हर जंग तुमने जब मशक्कत के भरोसे
छोड़ देहरी अब न जाओ आ गया सूरज मकर पर।
देश-रक्षा, जल-सुरक्षा और बेटी है बचाना
एक आंदोलन चलाओ आ गया सूरज मकर पर।
सिर्फ परहित ही रहे उद्देश्य जब 'विश्वास' सबका
पर्व-खिचड़ी तब मनाओ आ गया सूरज मकर पर।
</poem>