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11:15, 23 मई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=
|अनुवादक=कुमार मुकुल
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<poem>
रवा लोग
हमार बात के
गांठ बाध लीहीं।
रवा सभे जे खाइला
जे देखींला, जे सुनींला
आउर सांस लीहींला
ओह सब में
हम शामिल बानी।
एकरा ना समझे वाला
धीरे-धीरे
विनाश गति के
प्राप्त हो जाला। ॥4॥
मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ॥4॥
</poem>