भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
और कभी कभी
एक युवा सुकुमार आऔति आकृति अस्पष्ट
द्रुतगामी उड़ान में
तुम्हारी पहाड़ियों के आरपार पंख आर-पार पँख पसारती है ।
[1911]