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माहिए (111 से 120) / हरिराज सिंह 'नूर'

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111. भगवन के ख़ज़ाने में
‘नूर’ सभी कुछ है
देरी है तो पाने में
112. मन मोह लिया करतीं
‘नूर’ ये बूँदें भी
धरती की तपन हरतीं
 
113. बह निकले सभी नाले
आते ही बरखा के
हो जाते हैं मतवाले
 
114. मन जीत सको जीतो
आज सजन मेरा
जाए है समय बीतो
 
115. क्या दाल में काला है
सबके यहाँ मिलता
मकड़ी का वो जाला है
 
116. वो चिन्ता जो जागी है
दिन से जुड़ी लेकिन
सूरज से न भागी है
 
117. सूरज भी है झुकने को
आँख से तुम देखो
अब युद्ध है रुकने को
 
118. संसार ने जो माना
क्या था महाभारत
अब तक वो सही माना
 
119. तूफ़ान तो आएगा
कैसे वो मछुआरा
कश्ती को बचाएगा
 
120. हम सब ही तो नाचेंगे
भाग्य में जो कुछ है
उस पोथी को बाँचेंगे
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