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चलते हो तुम ।
देखकर चातछत, भरते हो आह –
आकाश ।
देख कर फ़र्श, तु रहते तुम कहते हो बोलती
पृथ्वी ।
 
कितने उदास हो तुम
न पाकर
एक ही आर्माआत्मा
अपने क्षितिज पर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिविक रमेश'''
 
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Вячеслав Куприянов
Нормальная жизнь
 
Удивительное ощущение
нормальной жизни
кто-то ходит над твоей головой
ты ходишь над чьими-то головами
глядя в потолок вздыхаешь — небо
глядя на пол твердишь — земля
грустишь ни души не видя
на своей черте горизонта
</poem>
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