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अगहन की अलसायी अलसाई धूप में
ठाकुर के खलिहान की नंगी दूब पर
तो उनकी शिथिल मांसपेशियों में
एक अजीब-सी सिहरन दौड़ गयीगई
एक आह उठी बीते समय पर
और धुंधलके धुँधलके में चमकती रहीं कुछ तस्वीरें
उन्हें एकाएक भरोसा नहीं हुआ कि
आँखें अब भी बाट जोहती है कि
फिर कोई उन्हें बुलाने आएगा
'भगत काका' मेरे यहाँ गिलावा बनाने चलो न!
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