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Kavita Kosh से
<poem>
जिन्हें हम देवता समझते हैं।
वो महज़ फ़क़त अर्चना समझते हैं।
जो हवा की दिशा समझते हैं।
चाँद रूठा हैं क्योंकि उसको हम,
एक रोटी सदा समझते हैं।
तोड़ कर देख लें वो पत्थर से,