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Kavita Kosh से
चमक मुझमें है पर गर्मी नहीं है,
मैं इक एक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ।
यकीनन संग-दिल भी काट दूँगा,
कभी मैं रह न पाऊँगा महल में,
मैं इक एक झरना हूँ फ़व्वारा नहीं हूँ।
कभी मुझमें उतरकर देख लेना,
समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ।
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