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Kavita Kosh से
रात कुछ ओस क्या मरुथल में गिरी, अब दिन भर,
आँधियाँ आग अग्नि की कहती बोले हैं कसर बाकी है।
तेरी आँखों के जज़ीरों पे ही दम टूट गया,