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12:07, 12 मई 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=चमन लाल
|संग्रह=कभी नहीं सोचा था / सुरजीत पातर
}}
{{KKCatKavita}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]
<Poem>
मैं जिन लोगों के लिए पुल बन गया था
वे जब मेरे ऊपर से गुज़र रहे थे
मैंने सुना, मेरे बारे में कह रहे थे :
वह कहाँ छूट गया है चुप-सा आदमी
शायद पीछे लौट गया है
हमें पहले ही मालूम था
कि उसमें दम नहीं है ।
'''पंजाबी से अनुवाद: चमन लाल'''
</poem>
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