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|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जब तुम नहीं होती हो
दिल के पर्वत पर यादों के बादल मंडराते हैं
छाती में छटपटाहट की हवाएँ बहती हैं
मन के आकाश में
बिजली के जैसी मिलन की चाह चमकती है
दिमाग के गलियारों में
आती-जाती रहती हैं खट्टी-मिठ्ठी स्मृतियाँ
जब तुम नहीं होती हो
यादों की नदी उमड़ती है
सूनी आँखों से उदास-उदास बरखा गिरती है
भिगते हैं ये पल
कि, जब तुम नहीं होती हो
अकेला-अकेला-सा बरसता रहता हूँ मैं।
</poem>
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जब तुम नहीं होती हो
दिल के पर्वत पर यादों के बादल मंडराते हैं
छाती में छटपटाहट की हवाएँ बहती हैं
मन के आकाश में
बिजली के जैसी मिलन की चाह चमकती है
दिमाग के गलियारों में
आती-जाती रहती हैं खट्टी-मिठ्ठी स्मृतियाँ
जब तुम नहीं होती हो
यादों की नदी उमड़ती है
सूनी आँखों से उदास-उदास बरखा गिरती है
भिगते हैं ये पल
कि, जब तुम नहीं होती हो
अकेला-अकेला-सा बरसता रहता हूँ मैं।
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