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हरकत / प्रयाग शुक्ल

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|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
होती है हरकत
 
चीज़ों में
 
कई बार ।
 
अचानक टन्न से
 
बोल उठता है
 
बरतन एक ।
 
सरक कर गिर पड़ती है
 
मेज़ के किनारे से
 
कोई चीज़ ।
 
तहा कर रखे हुए कपड़े
 
न जाने कब
 
झुक आते हैं
 
आगे की ओर ।
 
न जाने कब तिरछी हो
 
जाती है तस्वीर ।
 
पलस्तर आ रहता है,
 
अटका हुआ,
 
नीचे ।
 
न जाने कब
 
चलते-चलते
 
मुड़ जाती है दिशा ।
</poem>
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