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रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है
ग़म ही दुश्मन है मेरा , ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है.
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