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निद्रा में जा पड़े कभी के ग्राम-मनुज स्वच्छंद
अन्य विग विहग भी निज नीड़ों में सोते हैं सानन्द
इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चिन्तत चिन्तित गात
पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात ?
यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ?
या तुझको निज-जन्म -भूमि की सता रही है याद ?
विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप
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