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Kavita Kosh से
हू-हू कर घुस रही है स्वच्छ हवा
कुछ ग्लानि पोंछकर...
उन्नीसवीं सदी करवट दिलकर बदलकर सो जाती है।
'''मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी
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