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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=गौतम राजरिशी|संग्रह= }}<poem>रचना यहाँ टाइप करें</poem>देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में
चल, हुई अब शाम, लौटें हम भी डेरों में
ग़म नहीं, शिकवा नहीं कोई जमाने से
जिंदगी सिमटी है जब से चंद शेरों में
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