भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
204 bytes removed,
09:20, 30 सितम्बर 2009
'''तुम कौन थे भगतसिंह?'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /poem>मकडियों नें हर कोने को सिल दिया हैउलटे लटके चमगादडदेख रहें हैंकैसे सिर के बल चलता आदमीभूल गया है अपनी ज़मीनदीवारों पर की सीलन काफफूंद की आबादी कोदावत पर आमंत्रण हैदरवाज़ों पर दीमक की फौज़फहराती है आज़ादी का परचमदाहिने-बांयें थम...
मकडियों नें हर कोने को सिल दिया मैडम का जनमदिन है<br />उलटे लटके चमगादड<br />जनपथों के ट्रैफिक जाम हैदेख रहें हैं<br />साहब का मरणदिन हैकैसे सिर रेलडिब्बे के बल चलता ट्वायलेट तक में लेट करआदमी<br />भूल गया है अपनी ज़मीन<br />दीवारों पर की सीलन का<br />खाल पहने सूअरफफूंद की आबादी बढे आते हैं रैली को<br />दावत पर आमंत्रण थैली भर राशन उठायेंकि दिहाडी भी है<br />दरवाज़ों पर दीमक , मुफ्त की फौज़<br />गाडी भी हैफहराती देसी और ताडी भी है आज़ादी का परचम<br />दाहिने-बांयें थम...<br />
मैडम का जनमदिन है<br />और तुम भगतसिंह?जनपथों पागल कहीं के ट्रैफिक जाम है<br />साहब का मरणदिन है<br />रेलडिब्बे इस अह्सान फरामोश देश के ट्वायलेट तक में लेट लिये"आत्म हत्या” कर<br />ली?आदमी की खाल पहने सूअर<br />अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयीबढे आते तो कफन खसोंट काबिज हो गयेअब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं रैली जिनके बेटों पोतों को<br />विरासत में कुर्सियाँ मिली हैंथैली भर राशन उठायें<br />निपूते तुम! किसको क्या दे सके?कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है<br />फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने कादेसी और ताडी भी दिवा-स्पप्न था तुम्हारावह अमरबेल हो गयी है..<br />
और तुम भगतसिंह?<br />आज 23 मार्च है...पागल कहीं के<br />आज किसी बाग में फूल नहीं खिलतेइस अह्सान फरामोश देश के लिये<br />कि एक सरकारी माला गुंथ सके"आत्म हत्या” कर ली?<br />मीडिया को आज भीअंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी<br />किसी बलात्कार कातो कफन खसोंट काबिज हो गये<br />लाईव और एक्सक्लूसिवअब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व खुलासा करना हैसारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं<br />जिनके बेटों पोतों को विरासत और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठेजूतमपैजार में कुर्सियाँ मिली व्यस्त हैं<br />निपूते जिसके भीतर बम पटक कर तुम! किसको क्या दे सके?<br />फाँसी पर लटक कर जिस जड बहरों को उखाडने का<br />सुनाना चाहते थे...दिवा-स्पप्न था तुम्हारा<br />वह अमरबेल हो गयी है<br />बहरे अब अंधे भी हैं
आज 23 मार्च है...<br />आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते<br />कि एक सरकारी माला गुंथ सके<br />मीडिया को आज भी<br />किसी बलात्कार का<br />लाईव और एक्सक्लूसिव<br />खुलासा करना है<br />सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं<br />और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे<br />जूतमपैजार में व्यस्त हैं<br />जिसके भीतर बम पटक कर तुम<br />बहरों को सुनाना चाहते थे...<br />बहरे अब अंधे भी हैं<br /> तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत<br />कुछ भी तो नहीं<br />'''तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?<br /poem>'''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader