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{{KKRachna
|रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त
}}{{KKCatKavita}}<poem>तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,