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|रचनाकार=इक़बाल
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ख़िरद<ref>दिमाग </ref> के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं<br>हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरातेरा इलाज नज़र हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं<br><br>
हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है तेरा<br>अगर तो क्या हासिलहयात ज़ौक़सोज़-ए-सफ़र जिगर के सिवा कुछ और नहीं<br><br>
रंगो में गर्दिशउरूस-ए-ख़ूँ लाला मुनासिब नहीं है अगर तो क्या हासिल<br>मुझसे हिजाबहयात सोज़कि मैं नसीम-ए-जिगर सहर के सिवा कुछ और नहीं<br><br>
उरूसजिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब<br>फ़िरन्गकि मैं नसीमवो शय मता-ए-सहर हुनर के सिवा कुछ कुछ् और नहीं<br><br>
जिसे क़साद समझते हैं ताजरनगिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-फ़िरन्ग<br>ख़ुदी से है वरनावो शय मतागौहर में आब-ए-हुनर गौहर के सिवा कcउह्ह कुछ और नहीं<br><br>
गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना<br>
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं<br><br><br>
ख़िर्द=दिमाग़ <br><br/poem>{{KKMeaning}}