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अभिलाषा / इला प्रसाद

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|रचनाकार=इला प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मैं सप्त सुरों में गाऊँ 
एक सुर आँखों से बहे
 
आकुल मन की व्यथा कहे
 
आँखों में उतर जाए
 
एक सुर अधरों से झरे
 
तरल शीतल सुधा-धार
 
कानों में अमृत भरे
 
एक सुर हाथ रचें
 
कर्मों के तार बजें
 
गूँजे संसार
 
मन की भाषा मन कहे
 
मनों को दुलराता रहे
 
अनाहत-रव बजे
 
स्पंदित हों प्राण
 
सिर्फ़ बैखरी नहीं
 
मध्यमा और पश्यंती की
 
वाणी भी गूँजे
 
पूरा हो सुर-संसार
 
</poem>
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