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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:गीत]]
मेरी नींद रेत की मछली हुई मसहरी में।
रेत की मछली
हुई मसहरी में।।धान पान थे खेत हमारे नहरें लील गई
जैसे फूले कमल ताल की लहरे लील गईं
धान पान थे खेत हमारेआग लगी है घर की मीठी गंगा लहरी में।।
नहरें लील गई
जैसे फूले कमलकालीख झरती धूप यहाँ की हवा विषैली है
ताल सबसे ज़्यादा धोबी की लहरे लील गईंही चादर मैली है
आग लगी हैदिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में।।
घर की मीठी
गंगा लहरी में।।मुखिया खाते दूध भात हम धोखा खाते हैं
वहीं पंच परमेश्वर हैं जो घर अलगाते हैं
कालीख झरती धूप यहाँ की हवा विषैली है सबसे ज़्यादा धोबी की ही चादर मैली है दिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में।।  मुखिया खाते दूध भात हम धोखा खाते हैं वहीं पंच परमेश्वर हैं जो घर अलगाते हैं जितनी सड़कें नयीं बनीं सब गईं कचहरी में।