भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नानकदेव }}<poem>जो नर दुख में दुख नहिं मानै। सुख सने…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नानकदेव
}}<poem>जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=नानकदेव
}}<poem>जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।</poem>