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अन्न{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /Poem>अन्नधरती की ऊष्मा में पकते हैं<br />और कटने से बहुत पहले<br />पहुंच जाते हैं चुपके से<br />किसान की नींद में<br />कि देखो हम आ गये<br />गएतुम्हारी तिथि और स्वागत की<br />तैयारियों को गलत साबित करते <br /><br />अन्न<br />अपने सपनों में<br />कोई जगह नहीं देते<br />गोदामों और मंडियों को<br /><br />अन्न धुलेंगे<br />किसान की बिटिया के हाथों<br />पकेंगे बटुली के खौलते जल में<br />और एक भूखे गॉंव की खुशी में<br />बदल जायेंगे<br />जाएँगे<br />अन्न<br />पक्षियों की चोंच में बैठकर<br />करेंगे अपनी याञा<br />यात्रा<br />माढ़ बनकर<br />गाय का कंठ करेंगे तर<br />और अगली सुबह<br />उसके थन में<br />दूध बनकर मुस्कुरायेंगे<br />मुस्कुराएँगे<br />अन्न<br />हमेशा-हमेशा रहेंगे<br />प्रलय से पहले<br />प्रलय के बाद<br /><br />हमेशा-हमेशा<br />अपने दूधियापन से<br />जगर-मगर करते गॉंव गाँव का मन.<br /><br />मन।
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