Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} सुरा पी थी मैंने दिन चार उठा …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


सुरा पी थी मैंने दिन चार

उठा था इतने से ही ऊब,

नहीं रुचि ऐसी मुझको प्राप्‍त

सकूँ सब दिन मधुता में डूब,


:::हलाहल से की है पहचान,

:::लिया उसका आकर्षण मान,

:::मगर उसका भी करके पान

:::चाहता हूँ मैं जीवन-दान!
195
edits