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'''कमबख्त हिन्दुस्तानी'''

आगे
थोडा और आगे
और, और आगे
उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन पर आंखें गडाए क्यों खडे हो

हां, हां, कोशिश करो
सिर उठाकर सामने देखो
शाबाश! देखो ही नहीं
कदम भी आगे बढाओ

ओह्! सिर दाएं-बाएं क्यों करने लगे
सामने तो खुला रास्ता है
क्यों खुले रास्ते से डर लगता है
देखो! ऐसे करोगे तो...

शाम हो ही चुकी है
अब रात का घुप्प अन्धेरा भी पसरने लगेगा
फिर, कैसे आगे जा सकोगे

आह! फिर, वैसा ही करने लगे
खडे ही रहोगे
अरे बैठ भी गये
लेकिन, लेटना मत!
च्च, च्च, च्च, लेट गये
पर, सोना मत
हाय! आंखें क्यों बंद कर ली
धत्त! खर्राटे भी भरने लगे

काहिल कहीं के!
अजगर ही बने रहोगे
कमबख्त हिन्दुस्तानी!

(दिनांक: ०८-०८-२००९)