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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक अबोध अंतर ने
तुझसे एकाकार किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
तुझ पर सब कुछ वार दिया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
चुप, चुप, चुप कर, कुछ न कहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
चुप, चुप, अत्याचार सहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
मुस्काने के कोई
क्षण न गंवाएं
एक अबोध अंतर ने
हंस, हंस, हंसकर, नीर बहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
भावों का अहसास किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने शब्दों का
विश्वास किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
खुद को तुझ पर हार दिया
गलती की
एक अबोध अंतर न
तेरे सच से प्यार किया
गलती की
</poem>
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक अबोध अंतर ने
तुझसे एकाकार किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
तुझ पर सब कुछ वार दिया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
चुप, चुप, चुप कर, कुछ न कहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
चुप, चुप, अत्याचार सहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
मुस्काने के कोई
क्षण न गंवाएं
एक अबोध अंतर ने
हंस, हंस, हंसकर, नीर बहा
गलती की
एक अबोध अंतर ने
भावों का अहसास किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने शब्दों का
विश्वास किया
गलती की
एक अबोध अंतर ने
खुद को तुझ पर हार दिया
गलती की
एक अबोध अंतर न
तेरे सच से प्यार किया
गलती की
</poem>