भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
नीरा! तुम लो दोपहर की स्वच्छता
लो रात की दूरियांदूरियाँ
तुम लो चन्दन-समीर
लो नदी किनारे की कुंआरी कुँआरी मिट्टी की िस्नग्ध स्निग्ध सरलता
हथेलियों पर नींबू के पत्तों की गंध
नीरा, तुम घुमाओ अपना चेहरा