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वो काफ़िर आशना ना आश्ना यूँ भी है / जिगर मुरादाबादी

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वो काफ़िर आशना ना-आश्ना यूँ भी है और यूँ भी
हमारी इब्तदा ता-इंतहा यूँ भी है और यूँ भी

त'अज्जुब क्या अगर रस्म-ए-वफ़ा यूँ भी है और यूँ भी
कि हुस्न-ओ-इश्क़ का हर मसल'आ यूँ भी है और यूँ भी

कहीं ज़र्रा कहीं सहरा कहीं क़तरा कहीं दरिया
मुहब्बत और उसका सिलसिला यूँ भी है और यूँ भी
 
वो मुझसे पूछते हैं एक मक़सद मेरी हस्ती का
बताऊँ क्या कि मेरा मुद्द'आ यूँ भी है और यूँ भी

हम उनसे क्या कहें वो जानें उन की मस्लहत जाने
हमारा हाल-ए-दिल तो बरमला यूँ भी है और यूँ भी

न पा लेना तेरा आसाँ न खो देना तेरा मुमकिन
मुसीबत में ये जान-ए-मुब्तला यूँ भी है और यूँ भी