भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया / फ़राज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया
जब कि खुद पत्थर को बुत, बुत को खुदा मैंने किया

कैसे नामानूस लफ़्ज़ों कि कहानी था वो शख्स
उसको कितनी मुश्किलों से तर्जुमा मैंने किया

वो मेरी पहली मोहब्बत, वो मेरी पहली शिकस्त
फिर तो पैमाने-वफ़ा सौ मर्तबा मैंने किया

हो सजावारे-सजा क्यों जब मुकद्दर में मेरे
जो भी उस जाने-जहाँ ने लिख दिया, मैंने किया

वो ठहरता क्या कि गुजरा तक नहीं जिसके लिया
घर तो घर, हर रास्ता, आरास्ता मैंने किया

मुझपे अपना जुर्म साबित हो न हो लेकिन मैंने
लोग कहते हैं कि उसको बेवफ़ा मैंने किया

नामानूस - अजनबी, आरास्ता - सजाया