अबोले शब्दों के
मौन में
संजोए हैं मैंने
रेत के सपने
पाल ली है मछलियां
मरूथल की मृगमरिचिका में
तुम-
सांस बन जीवन दो
मेरी मछलियों को
सच करो
रेत के सपनों को
मझदार भी किनारा बने
मेरी सोच का
खोलो, खोलो
तुम्हारे होने के सच का
अनावृत घेरा।
अबोले शब्दों के
मौन में
संजोए हैं मैंने
रेत के सपने
पाल ली है मछलियां
मरूथल की मृगमरिचिका में
तुम-
सांस बन जीवन दो
मेरी मछलियों को
सच करो
रेत के सपनों को
मझदार भी किनारा बने
मेरी सोच का
खोलो, खोलो
तुम्हारे होने के सच का
अनावृत घेरा।