भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदस्य:Jagdishtapish

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है

रो रही इंसानियत हंसती यहाँ दरिंदगी है ये किसकी इबादत है ये किसकी बंदगी है।

लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है ये दिखावे की जिंदगी भी कोई जिंदगी है ।

दूसरों के ऐब गिनाना बहुत आसां है मगर अपने अंदर कौन झांकता है कितनी गंदगी है ।

सरे बाजार नंगे हो गए वो बेच के शर्मो हया राहगीरों की नज़र में आज तक शर्मिंदगी है ।

है इसका नाम मज़बूरी इसे मर्जी नहीं कहते बच्चों के लिए रूह बेचना भी कोई ज़िंदगी है ।

-हम तो पीने के बाद होश में आते हैं तपिश दो घूंट पी के होश खो देना भी कोई रिँदगी है ।

जगदीश तपिश

ग़ज़ल -

जाने कैसी कैसी रस्में खूब निभाई लोगों ने । आ के मेरे घर में लगाई आग पराई लोगों ने ।

आते जाते नजर मिली थी मुस्कानें भी रस्मी थीं । ना जाने क्यों फिर भी हमपे धूल उड़ाई लोगों ने ।

हमने कब अहसान जताया कब कोई उम्मीद रखी । हंस के हमने टाल दिया पर बात बढ़ाई लोगों ने ।

ना कोई तारीख मुक़र्रर ना मौसम त्यौहारों का । उनकी गली में कत्ल हुए हम ख़ुशी मनाई लोगों ने।

ऐसा क्या गुनाह था मेरा सोच के हम हैरान रहे । कब्र पे आये नसीहत देने नींद उड़ाई लोगों ने ।

जगदीश तपिश चेयरमेन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन[आई जी ओ ]

मध्य प्रदेश /छत्तीसगढ़ राज्य प्रभारी

संपर्क -9406784999