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समन्दर आँख से यों बह गया है / रंजना वर्मा

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समन्दर आँख से यूँ बह गया है
सिवा यादों के अब क्या रह गया है

तुम्हारा इस तरह जाना जहाँ से
ज़माने से बहुत कुछ कह गया है

हमारे आँसुओं पर तुम न जाना
महल मेरी खुशी का ढह गया है

तुम्हारे पास अफसाने बहुत थे
हमारा दिल हक़ीक़त सह गया है

हमारी हसरतों का खून कर के
वो क़ातिल घहर हमारे रह गया है

तबस्सुम फिर लबों पर खिल उठेगा
ये हर जाता मुसाफ़िर कह गया है

कभी भी वक्त का दरिया न रुकता
बहुत गंगा में पानी बह गया है