भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरिता से बहते जाते / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
सरिता से बहते जाते
चंचल जीवन पल,
आदि अंत अज्ञात,
ज्ञात बस फेनिल कल कल!
हार गए सब खोज,
मिली पर थाह न निस्तल,
डूब गया जो, पाया
उसने भेद, वह सफल!