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सर्ग के बात / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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सर्ग एक : भारत – अंग – कुप्पाघाट में मेँहीँ बाबा, महपूरुष के जीवन गाथा-जीवन शैली। महर्षि मेँहीँ जन्म स्थान, जन्म तिथि (ईस्वी सन के साथें विक्रम सवंत) जन्म वर्णन, तुलसी कें जन्म सें दाँत रहै, मेँहीँ बाबा कें माथा में जटटों, नामकरण, कुल बचपन में माँ के मृत्यु, नानी आरू बहन द्वारा पालन।

सर्ग दू : मुंडन, विद्यालय प्रवेश, आध्यात्मिक संस्कार, पिता के छाप, बहिन के विधवापन, पिता के विचार सें तालमेल नैं, प्रतीक्षा।

सर्ग तीन : चार जुलाई चार अंग्रेजी के प्ररीक्षा, प्रश्नौत्तर सें वैराग, बहिष्कार, विद्यालयी शिक्षा के अंत।

सर्ग चार: पुंजी के अभाव फिर भी दानी, ठाकुर गंज, रिविलगंज, जोतराम, राय जाना।

सर्ग पाँच: घर सें भागना, जानी पिता द्वारा खोज आरू बैरागों सें मुँह मोड़े के उपाय।

सर्ग छ: ठाकुर कृष्ण सिंह षटशास्त्री सें भेंट, यथार्थ पर आपत्ति, सारशब्द कें समझे के प्रयास, चतुरानंद शब्द पर आपत्ति, आल मेन मस्ट डाय के अध्ययन।

सर्ग सात: रामदास, धीरजलाल गुप्त सें गप्प, देवी बाबा आगू मेँहीँ बाबा के चाह, भागलपुर के राजेन्द्र नाथ सें भेंट, भजन-भेद के प्राप्ति, देवी बाबा सें दर्शन।

सर्ग आठ : गुरू मंत्र जाप, त्राटक, मधुकरी वृति, मुरादाबाद, आना, पिता के आग्रह पर गाँव, वहीं सत्संग भवन निर्माण, ब्राह्मण के पेशा पर ब्राह्मण कें आपति, बाबा के तर्क।

सर्ग नौ : रसोइया के रूप में मेँहीँ बाबा, देवी बाबा के शंका, मेँहीँ बाबा द्वारा समाधान।

सर्ग दस : माया गंज-कुप्पाघाट के महिमा, देवी बाबा द्वारा सूरत- शब्द योग (नादानुसंधान) की प्राप्ति। मधुकरी वृति पर देवी बाबा के आपत्ति, भिक्षाटन सें चोट, कर्ज पर रोक, देवी बाबा द्वारा बास आरू केला लगाबै के निर्देश, स्वावलम्बन के पाठ।

सर्ग ग्यारह: मुरादाबाद जाना, समय सें पहिने लौटना, बाबा के डाँट, बाबा के कड़ा रूख।

सर्ग बारह : मेँहीँ बाबा फोड़ा सें परेशान, नन्दन के पत्र, देवी बाबा के निर्वाण, निर्वाण के समय मेँहीँ बाबा अनुपस्थित, धरहरा में ध्यान कूप, देह के साथ हठ परित्याग।

सर्ग तेरह : मेँहीँ बाबा के परिवार, केरल आरू कश्मीर के यात्रा, पुलिस इंस्पेक्टर के रौव, सत्संग में हरिद्वार, सिंध, कराँची, मुत्लान, लाहौर, साथ में चार सत्संगी, गंगा वर्णन, सागर दर्शन, तीस ईस्वी मेँ सत्संग भवन चार सौ के लेली निर्माण।

सर्ग चौदह : कुप्पा घाट गुफा में ध्यान, सुरंग में हड्डी, महात्मा के आगमन, अठारह महीना सुरत-शब्द योग।
 
सर्ग पन्द्रह : ‘सत्संग मेरी स्वाँस’, है नौ सौ को भजन-भेद सन्याल सें भेंट, बाबा के जयंती लेली प्रस्ताव, जगदीश कश्यप के आगमन मासिक पत्रिका पर विचार, नामकरण-शांति-संदेश, संपादक विश्वानन्द।

सर्ग सौलह : चौतीसवाँ अधिवेशन, शिव पूजन सहाय द्वारा उदघाटन, सुधांशु जी, द्विज जी उपस्थित, हिन्द, हिन्दी, हिंदुस्तान शब्द के व्याख्या। विनोबा सें भेंट, कर्मयोग पर चर्चा।

सर्ग सतरह : महर्षि मेँहीँ आश्रम कुपाघाट निर्माण, पुस्तकालय, औषधालय, गुफा निर्माण कब, युकिको फ्यूजिता जापानी महिला, माइकेल्बीसेंट के चाह, लाल सखे पर बाबा के कृपा, राष्ट्र प्रेम।

सर्ग अठारह : थायलैंड, लाओस, कंबोडिया के भिक्षु, सरोजनी नायडू द्वारा सम्मान, महेश योगी सें भेंट वार्ता, रविवार कें पश्चिम के यात्रा, पत्रकार विजय निर्वाध सें तर्क-वितर्क।

सर्ग उन्नीस : रूसी शिष्या नीना शीला देवी कलकता, गुफा में सर्प, सहिष्णुता के दूत, बाबा अंतर्यामी, बाबा के उपदेश।

सर्ग बीस : देह व्याधि मंदिरम, बाबा अंतर्मुख होना, अश्वत्थामा के मुक्ति, उन्मुनि यानी मनोलय।

सर्ग इक्कीस : बाबा के महासमाधि, संत सेवी बाबा द्वारा अग्नि संस्कार, समाधि मंदिर, दार्शनिक बाबा के दर्शन, चमत्कार, उपदेश, गुरू महिमा।