भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीता राम गाई भोला डमरू बजावेलें / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीता राम गाई भोला डमरू बजावेलें।
तात थइया तात थइया डमरू धिनकाधिन्ना।
तिरकी तुन्ना नाधिर-धिन्ना तान के गिरावेलें।
बँसहा सवारी अंग भभूति लगावे ई तऽ,
गाँजा-भाँग पीके संगे योगिनी नचावेलें।।
पेन्हे बाघ छाला गले साँप लटकावे सिव,
कानवाँ में बिचछी कुंडल अजबे ढुलावेलें।।
भाँगवा के झोरी भोला काँख तर झुलावे ई त,
जटवा सुन्नर गंगाधर के बहावेलें।।
कहत महेन्द्र भोला मोरा मन भावेलें,
लागल बाटे आसा कब दरसन देखावेलें।।